भारत

बर्गर' जिसने बच्चों में बढ़ाया अस्थमा का खतरा

 

 
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लंदन। अगर आप बर्गर खाने के शौकीन हैं तो सचेत हो जाए। हाल ही में हुए एक नए शोध में पता चला है कि जो बच्चे जंक फूड पसंद करते हैं और सप्ताह में कम से कम तीन बर्गर खाते हैं, वे अस्थमा जैसी बीमारी को दावत दे रहे हैं।

 

 

शोधकर्ताओं ने इसके अध्ययन के लिए 20 देशों के 50,000 बच्चों को शामिल किया। शोध में पाया गया है बर्गर खाने वाले बच्चों को अस्थमा होने का खतरा अधिक होता है। इस शोध में पाया गया कि ऐसे युवा जो फल, सब्जियों और मछली का सेवन करते हैं उनमें बीमारी से प्रभावित होने का खतरा कम रहता है।

सिंहल और जीरामन

 


मेरा मानना है -पाक कला या व्यंजनों के बारे में संजीव कपूर जैसे लोग लिखें तो उसकी अहमियत है। लेकिन जब विभिन्न व्यंजनों के बारे में वीर संघवी और पुष्पेश पन्त के लेख राष्ट्रीय पत्रों में पढ़े तो मुझे लगा जो राजनीति, समाज और साहित्य आदि के बारे में लिख सकता है उसे खाने के बारे में लिखने का भी अधिकार हासिल हो जाता है। इसी नाते मैंने जबरदस्ती यह अधिकार हासिल कर आज एक कूर्मांचलीय व्यंजन और जैन समाज में लोक प्रिय एक चूर्ण के बारे में लिखने का संकल्प कर लिया।

चित्र में दिख रहा व्यंजन कूर्मांचलीय व्यंजन सिंहल है,जो चावल के आटे में शुद्ध घी का मोयन दे कर दही में दो तीन घंटे भिगो कर बनाया जाता है। इसमें शक्कर भी मिलाई जाती है। स्वाद के लिए कुछ लोग इलायची, सौंफ भी मिलाते हैं। इस तरह के पेस्ट को हथेली की मुट्ठी में भर कर घी या तेल में जलेबी के आकार का तल लिया जाता है। कूर्मांचल में त्योहारों में पकवान के रूप में इसे बनाया जाता है। वहां बुजर्ग महिलाएं इसे बनाने में माहिर होती हैं। अब कुछ महिलाएं चावल के आटे के स्थान पर सूजी ( रवा) का प्रयोग करती हैं। अनेक कूर्मांचलीयों की तरह मुझे भी यह व्यंजन बहुत पसंद है। मैं खुश किस्मत हूँ कि मेरी पत्नी इसे बना लेती है और प्रायः नाश्ते के रूप में यह व्यंजन मुझे मिल जाता है। कुछ लोग इसे ककड़ी के रायते में भिगो कर खाना पसंद करते हैं। मुझे 'जीरामन' के साथ सिंहल खाना भी रुचिकर लगा। संभवतः यह व्यंजन सम्पूर्ण भारत में केवल कूर्मांचल में ही बनता है। लेकिन वहां भी इसका स्वाद लेने के लिए किसी घर की शरण लेनी पड़ेगी क्योंकि बाजार में कहीं भी इसका व्यावसायिक उत्पादन नहीं होता।

 

 

'जीरामन' एक प्रकार की सूखी चटनी है जो अनेक मसालों को मिला कर बनायी जाती है और जैन समाज में अत्यंत लोकप्रिय है । इसका व्यावसायिक उत्पादन करने वाले एक व्यापारी ने मुझे बताया कि इसमें ८० प्रकार के मसाले मिलाये जाते हैं। लेकिन मुझे केवल १९ वस्तुओं की ही जानकारी मिल पायी। ये हैं - सादा नमक, मिर्च,अमचूर या आंवला,धनिया, हल्दी, काला नमक, जीरा,सौंफ,सौंठ,दाल चीनी, अजवाइन, लौंग,तेजपत्ता,बड़ी इलायची, सिया जीरा, जायपत्री,जायफल, हींग, हर्र। बहरहाल मसालों की संख्या जो भी हो लेकिन उनका उचित अनुपात ही जीरामन को इतना स्वादिष्ट बना पाता होगा। कूर्मान्चाली सिंहल जैनी जीरामन के साथ कुछ और ही स्वाद देता 

 

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